सनातन धर्म के बारे में जानकारी
'सनातन'
का
अर्थ
है
- शाश्वत या
'हमेशा बना रहने वाला',
अर्थात्
जिसका न आदि है न अन्त। सनातन धर्म
जिसे हिन्दू धर्म अथवा
वैदिक
धर्म
भी
कहा
जाता
है,
का
1,960,853,110 साल का इतिहास
हैं।
वेदों के अनुसार 4 युग है जिसकी कुल आयु 4,320,000 वर्ष है. यह चार युग निम्न है
1. सत्य युग (17,28,000 वर्ष or 40% of 4,320,000)
2. त्रेता युग (12,96,000
वर्ष
or 30% of 4,320,000)
3. द्वापर युग (864,000
वर्ष or 20% of 4,320,000)
4. कलि युग (432,000 वर्ष or 10% of 4,320,000)
सृष्टि कि कुल आयु : 4,294,080,000 वर्ष इसे कुल 14 मन्वन्तरों मे बाँटा गया है.
|
= 4,294,080,000/14= 306,720,000
|
1 मन्वन्तर
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= 71 चतुर्युगी
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= चार युग (सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलियुग) or
|
= 71 × 4,320,000 (एक चतुर्युगी)
|
= 306,720,000 वर्ष
|
हिंदू धर्म के पवित्र ग्रन्थों को दो भागों में बाँटा गया है- श्रुति और स्मृति। श्रुति के अन्तर्गत वेद : ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद ब्रह्म सूत्र व उपनिषद् आते हैं। श्रुति को छोड़कर अन्य सभी हिन्दू धर्मग्रन्थ स्मृति कहे जाते हैं, क्योंकि इनमें वो कहानियाँ हैं जिनको लोगों ने पीढ़ी दर पीढ़ी याद किया और बाद में लिखा।
वेद क्या है ?
वेद प्राचीन भारत के पवितत्रतम साहित्य हैं जो हिन्दुओं के प्राचीनतम और आधारभूत धर्मग्रन्थ भी हैं। भारतीय संस्कृति में वेद सनातन वर्णाश्रम धर्म के, मूल और सबसे प्राचीन ग्रन्थ हैं, जो ईश्वर की वाणी है। ये विश्व के उन प्राचीनतम धार्मिक ग्रंथों में हैं जिनके पवित्र मन्त्र आज भी बड़ी आस्था और श्रद्धा से पढ़े और सुने जाते हैं।
'वेद' शब्द संस्कृत भाषा के विद् शब्द से बना है। इस तरह वेद का शाब्दिक अर्थ 'ज्ञान के ग्रंथ' है। इसी धातु से 'विदित' (जाना हुआ), 'विद्या' (ज्ञान), 'विद्वान' (ज्ञानी) जैसे शब्द आए हैं।
आज 'चतुर्वेद' के रूप में ज्ञात इन ग्रंथों का विवरण इस प्रकार है -
- ऋग्वेद - सबसे प्राचीन वेद है. इसमें 10 मंडल हैं और 10552 मंत्र है । इसमें देवताओं के गुणों का वर्णन और प्रकाश के लिए मन्त्र हैं - सभी कविता-छन्द रूप में।
- सामवेद - इसमें 1975 मंत्र और 40 अध्याय हैं। उपासना में गाने के लिये 1975 संगीतमय मंत्र।
- यजुर्वेद - इसमें कार्य (क्रिया) व यज्ञ (समर्पण) की प्रक्रिया के लिये 3750 गद्यात्मक मन्त्र हैं। इसमें 1875 मंत्र हैं।
- अथर्ववेद - इसमें गुण, धर्म, आरोग्य, एवं यज्ञ के लिये 7260 कवितामयी मन्त्र हैं। इसमें 5987 मंत्र और 20 कांड हैं।
· चारों वेदों में कुल मिलाकर 20389 मंत्र हैं।
· वेद के अंतर्गत चार विभाग हैं: 1) संहिता, 2) ब्राह्मण, 3) आरण्यक और 4) उपनिषद् |
· वेदों के मूल पाठ को संहिता कहते हैं। यह चारों वेदों के अलग-अलग पाठ हैं।
· मुख्य ब्राह्मण 4 हैं : ऐतरेय, तैत्तिरीय, शतपथ तथा गोपथ।
· वेदों की रचना ऋषियों ने की है। वे रहते थे वनों में, जंगलों में। वन को संस्कृत में कहते हैं 'अरण्य'। अरण्यों में बने हुए ग्रंथों का नाम पड़ गया 'आरण्यक'। मुख्य आरण्यक पाँच हैं : ऐतरेय, शांखायन, बृहदारण्यक, तैत्तिरीय और तवलकार।
· मुख्य स्मृतियाँ हैं - मनु स्मृति (मानव धर्मशास्त्र), याज्ञवल्क्य स्मृति, अत्रि स्मृति, विष्णु स्मृति, आपस्तम्ब स्मृति, पाराशर स्मृति, व्यास स्मृति और वशिष्ठ स्मृति।
ऋग्वेद
के
विषय
में
कुछ प्रमुख बातें निम्नलिखित
है-
Ø
ऋग्वेद में मृत्युनिवारक त्र्यम्बक-मंत्र या मृत्युंजय मन्त्र (7/59/12)
वर्णित
है.
Ø
ऋग्वेद में विश्व-विख्यात गायत्री मन्त्र (ऋ0
3/62/10) भी में वर्णित
है।.
Ø
ॠग्वेद
में कुल दस मण्डल
हैं और उनमें 1028 सूक्त
हैं और कुल 10,580 ऋचाएँ
हैं। इन मण्डलों में
कुछ मण्डल छोटे हैं और
कुछ बड़े हैं।
Ø
ॠग्वेद
के कई सूक्तों में
विभिन्न वैदिक देवताओं की स्तुति करने
वाले मंत्र हैं। यद्यपि ॠग्वेद
में अन्य प्रकार के
सूक्त भी हैं, परन्तु
देवताओं की स्तुति करने
वाले स्तोत्रों की प्रधानता है।
Ø
ऋग्वेद
में 33 देवी-देवताओं का
उल्लेख है। इस वेद
में सूर्या, उषा तथा अदिति
जैसी देवियों का वर्णन किया
है। इसमें अग्नि को आशीर्षा, अपाद,
घृतमुख, घृत पृष्ठ, घृत-लोम, अर्चिलोम तथा
वभ्रलोम कहा गया है।
इसमें इन्द्र को सर्वमान्य तथा
सबसे अधिक शक्तिशाली देवता
माना गया है। इन्द्र
की स्तुति में ऋग्वेद में
250 ऋचाएँ हैं। ऋग्वेद के
एक मण्डल में केवल एक
ही देवता की स्तुति में
श्लोक हैं, वह सोम
देवता है।
Ø
इस
वेद में बहुदेववाद, एकेश्वरवाद,
एकात्मवाद का उल्लेख है।
Ø
ऋग्वेद
के नासदीय सूक्त में निर्गुण ब्रह्म
का वर्णन है।
Ø
इस
वेद में आर्यों के
निवास स्थल के लिए
सर्वत्र 'सप्त सिन्धवः' शब्द
का प्रयोग हुआ है।
Ø
इसमें
कुछ अनार्यों जैसे - कीकातास, पिसाकास, सीमियां आदि के नामों
का उल्लेख हुआ है। इसमें
अनार्यों के लिए 'अव्रत'
(व्रतों का पालन न
करने वाला), 'मृद्धवाच' (अस्पष्ट वाणी बोलने वाला),
'अनास' (चपटी नाक वाले)
कहा गया है।
Ø
इस
वेद लगभग 25 नदियों का उल्लेख किया
गया है जिनमें सर्वाधिक
महत्वपूर्ण नदी सिन्धु का
वर्णन अधिक है।सर्वाधिक पवित्र
नदी सरस्वती को माना गया
है तथा सरस्वती का
उल्लेख भी कई बार
हुआ है। इसमें गंगा
का प्रयोग एक बार तथा
यमुना का प्रयोग तीन
बार हुआ है।
Ø
ऋग्वेद
में राजा का पद
वंशानुगत होता था। ऋग्वेद
में सूत, रथकार तथा
कर्मार नामों का उल्लेख हुआ
है, जो राज्याभिषेक के
समय पर उपस्थित रहते
थे। इन सभी की
संख्या राजा को मिलाकर
12 थी।
Ø
ऋग्वेद
में 'वाय' शब्द का
प्रयोग जुलाहा तथा 'ततर' शब्द
का प्रयोग करघा के अर्थ
में हुआ है।
Ø
ऋग्वेद
के 9वें मण्डल में
सोम रस की प्रशंसा
की गई है।
Ø
"असतो
मा सदगमय" वाक्य ऋग्वेद से लिया गया
है। सूर्य (सवितृ को सम्बोधित "गायत्री
मंत्र" ऋग्वेद में उल्लेखित है।
Ø
इस
वेद में गाय के
लिए 'अहन्या' शब्द का प्रयोग
किया गया है।
Ø
ऋग्वेद
में ऐसी कन्याओं के
उदाहरण मिलते हैं जो दीर्घकाल
तक या आजीवन अविवाहित
रहती थीं। इन कन्याओं
को 'अमाजू' कहा जाता था।
Ø
इस
वेद में हिरण्यपिण्ड का
वर्णन किया गया है।
इस वेद में 'तक्षन्'
अथवा 'त्वष्ट्रा' का वर्णन किया
गया है। आश्विन का
वर्णन भी ऋग्वेद में
कई बार हुआ है।
आश्विन को नासत्य (अश्विनी
कुमार) भी कहा गया
है।
Ø
इस
वेद के 7वें मण्डल
में सुदास तथा दस राजाओं
के मध्य हुए युद्ध
का वर्णन किया गया है,
जो कि पुरुष्णी (रावी)
नदी के तट पर
लड़ा गया। इस युद्ध
में सुदास की जीत हुई
।
Ø
ऋग्वेद
में 'जन' का उल्लेख
275 बार तथा 'विश' का
170 बार किया गया है।
कई ग्रामों के समूह को
'विश' कहा गया है
और अनेक विशों के
समूह को 'जन'।
एक बड़े प्रशासनिक क्षेत्र
के रूप में 'जनपद'
का उल्लेख ऋग्वेद में केवल एक
बार हुआ है। जनों
के प्रधान को 'राजन्' या
राजा कहा जाता था।
आर्यों के पाँच कबीले
होने के कारण उन्हें
ऋग्वेद में 'पञ्चजन्य' कहा
गया – ये थे- पुरु,
यदु, अनु, तुर्वशु तथा
द्रहयु।
Ø
'विदथ'
सबसे प्राचीन संस्था थी। इसका ऋग्वेद
में 122 बार उल्लेख आया
है। 'समिति' का 9 बार तथा
'सभा' का 8 बार उल्लेख
आया है।
Ø
ऋग्वेद
में कृषि का उल्लेख
24 बार हुआ है।
Ø
ऋग्वेद
में में कपड़े के
लिए वस्त्र, वास तथा वसन
शब्दों का उल्लेख किया
गया है। इस वेद
में 'भिषक्' को देवताओं का
चिकित्सक कहा गया है।
Ø
इस
वेद में केवल हिमालय
पर्वत तथा इसकी एक
चोटी मुञ्जवन्त का उल्लेख हुआ
है।
सामवेद के विषय में कुछ प्रमुख तथ्य निम्नलिखित है-
- सामवेद से तात्पर्य है कि वह ग्रन्थ जिसके मन्त्र गाये जा सकते हैं और जो संगीतमय हों।
- यज्ञ, अनुष्ठान और हवन के समय ये मन्त्र गाये जाते हैं। इसमें यज्ञानुष्ठान के उद्गातृवर्ग के उपयोगी मन्त्रों का संकलन है।
- इसका नाम सामवेद इसलिये पड़ा है कि इसमें गायन-पद्धति के निश्चित मन्त्र ही हैं।
- इसके अधिकांश मन्त्र ॠग्वेद में उपलब्ध होते हैं, कुछ मन्त्र स्वतन्त्र भी हैं। सामवेद में मूल रूप से 99 मन्त्र हैं और शेष ॠग्वेद से लिये गये हैं।
- वेद के उद्गाता, गायन करने वाले जो कि सामग (साम गान करने वाले) कहलाते थे। उन्होंने वेदगान में केवल तीन स्वरों के प्रयोग का उल्लेख किया है जो उदात्त, अनुदात्त तथा स्वरित कहलाते हैं।
- सामगान व्यावहारिक संगीत था। उसका विस्तृत विवरण उपलब्ध नहीं हैं।
- वैदिक काल में बहुविध वाद्य यंत्रों का उल्लेख मिलता है जिनमें से
- तंतु वाद्यों में कन्नड़ वीणा, कर्करी और वीणा,
- घन वाद्य यंत्र के अंतर्गत दुंदुभि, आडंबर,
- वनस्पति तथा सुषिर यंत्र के अंतर्गतः तुरभ, नादी तथा
- बंकुरा आदि यंत्र विशेष उल्लेखनीय हैं।
- अथर्ववेद की भाषा और स्वरूप के आधार पर ऐसा माना जाता है कि इस वेद की रचना सबसे बाद में हुई।
- इसमें ॠग्वेद और सामवेद से भी मन्त्र लिये गये हैं।
- जादू से सम्बन्धित मन्त्र-तन्त्र, राक्षस, पिशाच, आदि भयानक शक्तियाँ अथर्ववेद के महत्त्वपूर्ण विषय हैं।
- इसमें भूत-प्रेत, जादू-टोने आदि के मन्त्र हैं।
- ॠग्वेद के उच्च कोटि के देवताओं को इस वेद में गौण स्थान प्राप्त हुआ है।
- धर्म के इतिहास की दृष्टि से ॠग्वेद और अथर्ववेद दोनों का बड़ा ही मूल्य है।
- अथर्ववेद से स्पष्ट है कि कालान्तर में आर्यों में प्रकृति-पूजा की उपेक्षा हो गयी थी और प्रेत-आत्माओं व तन्त्र-मन्त्र में विश्वास किया जाने लगा था
'पुराण'
का
शाब्दिक
अर्थ
है,
'प्राचीन'
या
'पुराना'।
पुराणों
की
रचना
मुख्यतः
संस्कृत
में
हुई
है. पुराण को दो भागों में बाँटा गया है।
महापुराण
|
अग्नि पुराण
|
ब्रह्म वैवर्त पुराण
|
लिंग पुराण
|
उपपुराण
|
बृहद्धर्म
|
नरसिंह
|
कूर्म पुराण
|
ब्रह्माण्ड पुराण
|
वामन पुराण
|
कपिल
|
मुद्गल
|
||
गरुड़ पुराण
|
भविष्य पुराण
|
वायु/शिव पुराण
|
कल्कि
|
विष्णुधर्मोत्तर
|
||
नारद पुराण
|
भागवत पुराण
|
वाराह पुराण
|
कालिका
|
शिवरहस्य
|
||
पद्म पुराण
|
मत्स्य पुराण
|
विष्णु पुराण
|
गणेश
|
साम्ब
|
||
ब्रह्म पुराण
|
मार्कण्डेय पुराण
|
स्कन्द पुराण
|
देवी-भागवत
|
सौर
|
Ø ब्रह्मपुराण में श्लोकों की संख्या 14000 और 246 अध्याय हैं।
Ø पद्मपुराण में श्लोकों की संख्या 55000 हैं।
Ø विष्णुपुराण में श्लोकों की संख्या 23000 हैं।
Ø शिवपुराण में श्लोकों की संख्या 24000 हैं।
Ø श्रीमद्भावतपुराण में श्लोकों की संख्या 18000 हैं।
Ø नारदपुराण में श्लोकों की संख्या 25000 हैं।
Ø मार्कण्डेयपुराण में श्लोकों की संख्या 9000 हैं।
Ø अग्निपुराण में श्लोकों की संख्या 15000 हैं।
Ø भविष्यपुराण में श्लोकों की संख्या 14500 हैं।
Ø ब्रह्मवैवर्तपुराण में श्लोकों की संख्या 18000 हैं।
Ø लिंगपुराण में श्लोकों की संख्या 11000 हैं।
Ø वाराहपुराण में श्लोकों की संख्या 24000 हैं।
Ø स्कन्धपुराण में श्लोकों की संख्या 51100 हैं।
Ø वामनपुराण में श्लोकों की संख्या 10000 हैं।
Ø कूर्मपुराण में श्लोकों की संख्या 17000 हैं।
Ø मत्सयपुराण में श्लोकों की संख्या 14000 हैं।
Ø गरुड़पुराण में श्लोकों की संख्या 19000 हैं।
Ø
ब्रह्माण्डपुराण में श्लोकों की संख्या 12000 हैं।
उपनिषद् शब्द
का
साधारण
अर्थ
है
- ‘समीप
उपवेशन’
या
'समीप
बैठना
(ब्रह्म
विद्या
की
प्राप्ति
के
लिए
शिष्य
का
गुरु
के
पास
बैठना)
108 उपनिषदों को निम्नलिखित श्रेणियों में विभाजित किया जाता है-
(1) ऋग्वेदीय -- 10 उपनिषद्
(2) शुक्ल यजुर्वेदीय -- 19 उपनिषद्
(3) कृष्ण यजुर्वेदीय -- 32 उपनिषद्
(4) सामवेदीय -- 16 उपनिषद्
(5) अथर्ववेदीय -- 31 उपनिषद्
कुल उपनिषद् की संख्या १०८ है।
सनातन धर्म ( हिन्दू धर्म ) के सिद्धान्त के कुछ मुख्य बिन्दु:
1. ईश्वर एक नाम अनेक.
2. ब्रह्म या परम तत्त्व सर्वव्यापी है।
3. ईश्वर से डरें नहीं, प्रेम करें और प्रेरणा लें.
4. हिन्दुत्व का लक्ष्य स्वर्ग-नरक से ऊपर.
5. हिन्दुओं में कोई एक पैगम्बर नहीं है।
6. धर्म की रक्षा के लिए ईश्वर बार-बार पैदा होते हैं।
7. परोपकार पुण्य है, दूसरों को कष्ट देना पाप है।
8. जीवमात्र की सेवा ही परमात्मा की सेवा है।
9. स्त्री आदरणीय है।
10. सती का अर्थ पति के प्रति सत्यनिष्ठा है।
11. हिन्दुत्व का वास हिन्दू के मन, संस्कार और परम्पराओं में.
12. पर्यावरण की रक्षा को उच्च प्राथमिकता.
13. हिन्दू दृष्टि समतावादी एवं समन्वयवादी.
14. आत्मा अजर-अमर है।
15. सबसे बड़ा मंत्र गायत्री मंत्र.
16. हिन्दुओं के पर्व और त्योहार खुशियों से जुड़े हैं।
17. हिन्दुत्व का लक्ष्य पुरुषार्थ है और मध्य मार्ग को सर्वोत्तम माना गया है।
18. हिन्दुत्व एकत्व का दर्शन है।
सनातन धर्म ( हिन्दू धर्म ) के पांच प्रमुख
देवता
·
सूर्य - स्वास्थ्य, प्रतिष्ठा व सफलता।
·
विष्णु - शांति व वैभव।
·
शिव - ज्ञान व विद्या।
·
शक्ति - शक्ति व सुरक्षा।
·
गणेश - बुद्धि व विवेक
देवताओं के
गुरु
बृहस्पति माने
गए
हैं।
दानवों के
गुरु
शुक्राचार्य माने
जाते
हैं।
वर्ण
व्यवस्था - चार
प्रमुख वर्ण थे - ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र।
संस्कृत भाषा के बारे में कुछ रोचक तथ्य
संस्कृत (संस्कृतम्) भारतीय उपमहाद्वीप की एक धार्मिक भाषा है। इसे देववाणी अथवा सुरभारती भी कहा जाता है। यह विश्व की सबसे प्राचीन भाषा है। इसे कम्प्यूटर और कृत्रिम बुद्धि के लिये सबसे उपयुक्त भाषा माना जाता है। शोध से ऐसा पाया गया है कि संस्कृत पढ़ने से स्मरण शक्ति बढ़ती है। संस्कृत विश्व की सर्वाधिक 'पूर्ण' (perfect) एवं तर्कसम्मत भाषा है। संस्कृत कई भारतीय भाषाओं की जननी है। हिन्दू, बौद्ध, जैन आदि धर्मों के प्राचीन धार्मिक ग्रन्थ संस्कृत में हैं। हिन्दुओं, बौद्धों और जैनों के नाम भी संस्कृत पर आधारित होते हैं। हिन्दुओं के सभी पूजा-पाठ और धार्मिक संस्कार की भाषा संस्कृत ही है।
हमारे महाकाव्य
रामायण आदि कवि वाल्मीकि द्वारा लिखा गया संस्कृत का एक अनुपम महाकाव्य है। इसके 24,000 श्लोक हैं।
महाभारत हिन्दुओं का एक प्रमुख काव्य ग्रंथ है, जो स्मृति के इतिहास वर्ग में आता है। ऋषि कृष्ण द्वेपायन वेदव्यास महाभारत ग्रंथ के रचयिता हैं। पूरे महाभारत में लगभग 1,10,000 श्लोक हैं .
गंगैकोण्ड चोलपुरम्, तमिलनाडु के त्रिचुरापल्ली जिले में स्थित एक स्थान है। यह जैयमकोण्ड सोलापुर से १० किमी की दूरी पर है। प्राचीन काल में यह एक प्रख्यात नगर था। लोकप्रवाद हे कि वाणासुर के तपस्या के फलस्वरूप शिव ने यहाँ एक कूप में गंगा बहा दी थी जिसके कारण यह नाम पड़ा है। वस्तुत: इसे प्रथम राजेंद्र चोल ने बसाया था जो 'गंगैकोंडचोल' कहा जाता था। यहाँ चोलकालीन एक विशाल मंदिर के अवशेष हैं।
हमारे महाकाव्य
रामायण आदि कवि वाल्मीकि द्वारा लिखा गया संस्कृत का एक अनुपम महाकाव्य है। इसके 24,000 श्लोक हैं।
महाभारत हिन्दुओं का एक प्रमुख काव्य ग्रंथ है, जो स्मृति के इतिहास वर्ग में आता है। ऋषि कृष्ण द्वेपायन वेदव्यास महाभारत ग्रंथ के रचयिता हैं। पूरे महाभारत में लगभग 1,10,000 श्लोक हैं .
गंगैकोण्ड चोलपुरम्, तमिलनाडु के त्रिचुरापल्ली जिले में स्थित एक स्थान है। यह जैयमकोण्ड सोलापुर से १० किमी की दूरी पर है। प्राचीन काल में यह एक प्रख्यात नगर था। लोकप्रवाद हे कि वाणासुर के तपस्या के फलस्वरूप शिव ने यहाँ एक कूप में गंगा बहा दी थी जिसके कारण यह नाम पड़ा है। वस्तुत: इसे प्रथम राजेंद्र चोल ने बसाया था जो 'गंगैकोंडचोल' कहा जाता था। यहाँ चोलकालीन एक विशाल मंदिर के अवशेष हैं।
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